Saturday 19 March 2016

साइबोर्ग -Cyborgs

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उस दिन की कल्पना कीजिए , जब आप अपनी जरूरत के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को अपनी स्किन के नीचे फिट करासकेंगे और उसे उतने ही स्वाभाविक तरीक से आपरेट कर भीसकेंगे। टेक्नोलजी की उन्नति ने मनुष्य के सामने यह विकल्प भीपेश कर दिया है। शरीर के अंदर आधुनिक गैजेट्स फिट करनेकी यह तकनीकी आपको सचमुच किसी ‘ साइबोर्ग ‘, ‘बायोनिक मैन ‘ या ‘ टेक्नो – मानव ‘ में तब्दील कर देगी। यदिआप बार – बार अपना मोबाइल फोन घर भूल जाते हैं तोटेक्नोलजी इसका समाधान खोज देगी। आप चाहें तो फोन कोस्थायी रूप से अपनी बाजू में प्रत्यारोपित करा सकते हैं।
लेकिन सवाल यह है कि इस तरह का अवसर मिलने पर आपक्या सचमुच ऐसे किसी गैजेट को अपने शरीर का स्थायी हिस्सा बनाना चाहेंगे ? कनाडा में टोरंटो स्थित एक सॉफ्टवेयर कंपनी के रिसर्चरों ने यह पता लगाने की कोशिश की है कि हम अपने इलेक्ट्रोनिक्स उपकरणों काजिन तरीकों से उपयोग करते हैं , क्या ऐसे तरीके तब भी उतने ही कारगर होंगे , जब उन उपकरणों को हममानव टिशू में प्रत्यारोपित कर देंगे ? उन्हें इसका एकदम सकारात्मक जवाब मिला। रिसर्चरों ने चिकित्सीयअध्ययन के लिए लाए गए एक मानव शरीर की बाजू में स्किन के नीचे एक बटन , एक एलईडी लाइट और एकटच सेंसर को फिट किया। और उन्होंने इन चीजों को एकदम सही ढंग से काम करता हुआ पाया। उन्होंने ब्लूटूथकनेक्शन से स्किन के नीचे रखे उपकरणों से संपर्क स्थापित करने और इलेक्ट्रोनिक उपकरणों को वायरलेस तरीकेसे री – चार्ज करने में भी सफलता प्राप्त कर ली।
ऐसी स्थिति में उसे शरीर से हटानापड़ेगा। इसके लिए फिर से ऑपरेशन करना होगा। एक दूसरा बड़ा खतरा यह है कि प्रत्यारोपित उपकरणआसपास के टिशुओं को संक्रमित कर सकता है। ट्रेकिंग डिवाइस के रूप में फोनों के बढ़ते हुए इस्तेमाल से लोगोंकी प्राइवेसी भी खतरे में पड़ सकती है , खासकर तब जब इस तरह के डिवाइस शरीर के अंदर ही फिट कर दिएगए हों। कनाडा के रिसर्चरों ने प्रत्यारोपित उपकरणों से संक्रमण होने की संभावना को तो खारिज कर दिया।उनके मुताबिक यह कोई बड़ा इशू नहीं है। आज भी पेसमेकर , स्टेंट्स और रिप्लेसमेंट हिप्स जैसी कई बाहरीचीजें रोगी के शरीर में सफलता पूर्वक प्रत्यारोपित की जा रही हैं।

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