रोशनी के पर्व दीपावली के दो दिन बाद मंगलवार को भारत अपने पहले मंगल
मिशन का प्रक्षेपण का अंतरिक्ष में नया इतिहास रचेगा। श्रीहरिकोटा स्थित
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के पहले लांच पैड पर देश के पहले मंगल अभियान की
उलटी गिनती शुरू हो गई है. सौरमंडल के जिस ‘एवरेस्ट’ को अब तक केवल एक
एलीट ग्रुप ही फतह कर सका है, भारत अब उसपर पैर रखने जा रहा है. अपने पहले
मंगल मिशन ‘मंगलयान’ के साथ भारत अब अमेरिका, रूस और यूरोप के उस एलीट
ग्रुप को ज्वाइन करने जा रहा है, जिनके मंगल अभियानों ने इस ग्रह से हमें
परिचित कराया है और इसके बारे में हमारी जानकारी बढ़ाई है. मंगल ग्रह पर
एक के बाद एक मिशन भेजने में ये एलीट ग्रुप काफी दुस्साहसी रहा है. लेकिन
इसी साहस की बदौलत ही हम आज मंगल ग्रह को कई मायनों में अपनी धरती से भी
ज्यादा बेहतर और कहीं ज्यादा गहराई के साथ जान-समझ सके हैं. मंगल की ओर
भारत के मंगलयान का सफर 5 नवंबर को शुरू हो रहा है.
मंगल पर एलीट ग्रुप के दबदबे के बीच भारत की ये बस एक बहुत छोटी सी कोशिश भर है. इसकी तुलना ‘चंद्रयान’ से करना बेमानी है और चंद्रयान के जैसे चमत्कारिक नतीजों की उम्मीद बस एक खुशफहमी से ज्यादा कुछ नहीं. रतलब है कि लगभग 1340 किलोग्राम वजनी मंगलयान का निर्माण पूर्णत: स्वदेशी तकनीक से किया गया है। उपग्रह में ऎसी प्रणालियां है जिससे यान खुद निर्देशित होगा और अपनी गलतियां खुद सुधारेगा। इसमें नेविगेशन प्रणाली है यानी मार्ग भटकने पर वह खुद सही रास्ते पर आ भी जाएगा। चूंकि रॉकेट से अलग होने के बाद मंगलयान को लंबा सफर तय करना है इसलिए उसके साथ लांचर भी है। इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाला भारत पहला देश है।
मंगल पर एलीट ग्रुप के दबदबे के बीच भारत की ये बस एक बहुत छोटी सी कोशिश भर है. इसकी तुलना ‘चंद्रयान’ से करना बेमानी है और चंद्रयान के जैसे चमत्कारिक नतीजों की उम्मीद बस एक खुशफहमी से ज्यादा कुछ नहीं. रतलब है कि लगभग 1340 किलोग्राम वजनी मंगलयान का निर्माण पूर्णत: स्वदेशी तकनीक से किया गया है। उपग्रह में ऎसी प्रणालियां है जिससे यान खुद निर्देशित होगा और अपनी गलतियां खुद सुधारेगा। इसमें नेविगेशन प्रणाली है यानी मार्ग भटकने पर वह खुद सही रास्ते पर आ भी जाएगा। चूंकि रॉकेट से अलग होने के बाद मंगलयान को लंबा सफर तय करना है इसलिए उसके साथ लांचर भी है। इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाला भारत पहला देश है।
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